Natasha

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तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी

मुराद अली से रोज़ काम पड़ता था, नत्थू कैसे इन्कार कर देता। जब कभी शहर में कोई घोड़ा मरता, गाय या भैंस मरती तो मुराद अली खाल दिलवा दिया करता था, अठन्नी रुपया मुराद अली को भी देना पड़ता मगर खाल मिल जाती। बड़े रख-रखाववाला आदमी था, मुराद अली, कमेटी का कारिन्दा होने के कारण बड़े-छोटे सभी लोगों को उससे काम पड़ता था।

शहर की कोई सड़क न थी जिसके बीचोबीच लोगों ने मुराद अली को चलते न देखा हो। पतली बैंत की छड़ी झुलाता हुआ, ठिगना, काला मुराद अली, जगह जगह घूमता था। शहर की किसी गली में, किसी सड़क पर वह किसी वक्त भी नमूदार हो जाता था। साँप की सी छोटी छोटी पैनी आंखें और कँटीली मूँछें और घुटनों तक लम्बा खाकी कोट और सलवार और सिर पर पगड़ी-उसे सब फबते थे इन सबको मिलाकर ही मुराद अली की अपनी ख़ास तस्वीर बनती थी। अगर हाथ में पतली छड़ी न होती तो भी और जो सिर पर पगड़ी न होती तो भी और जो उसका क़द ठिगना नहीं होता तो भी उसकी तस्वीर अधूरी रह जाती।

मुराद अली खुद तो हुक्म चलाकर निकल गया, नत्थू की जान साँसत में आ गयी। सुअर कहाँ से पक़ड़े और उसे काटे कैसे। नत्थू के मन में आया था कि शहर के बाहर सीधा पिगरी में चला जाये, और उन्हीं से कह दे कि एक सुअर काटकर सलोतरी साहिब के घर भिजवा दें। मगर उसके क़दम पिगरी की ओर नहीं उठे।

सुअर की कोठरी के अन्दर लाना कौन-सा आसान काम रहा था। उसने आवारा घूमते सुअरों को कचरे में मुँह मारते देखा था। उसे और कुछ नहीं सूझा। एक कचरे के ढेर पर से कचरा उठा-उठाकर लाता रहा और इस टूटी-फूटी कोठरी के बाहर आँगन में, दरवाजे के पास कचरे का ढेर लगाता रहा था। शाम के शाये उतरने लगे थे जब गन्दे पानी के पोखरों, गोबर के ढेरों और गर्द से अटी झाड़ियों के पास से घूमते हुए तीन सुअर उधर से आ निकले थे। तभी उनमें से एक सुअर कचरा सूँघता हुआ आँगन के अन्दर आ गया था और नत्थू ने झट से किवाड़ बन्द कर दिया था। फिर झट से भागकर उसने आँगन के पार कोठरी का दरवाज़ा खोल दिया था और अपनी लाठी से सुअर को हाँकता हुआ कोठरी के अन्दर ले गया था। फिर इस डर से कि सुअर-बाड़े का आदमी सुअर को खोजता हुआ उधर नहीं आ निकले और सुअर को किकियाता न सुन ले, नत्थू फिर से कचरा उठा-उठाकर कोठरी के अन्दर डालता रहा था। कोठरी के अन्दर कचरा पहुँच जाने पर सुअर उसी में खो गया था और नत्थू आश्वस्त होकर देर तक कोठरी के बाहर बैठा बीड़ियाँ फूँकता और अँधेरा पड़ जाने का इन्तजार करता रहा था। बहुत देर के बाद जब रात गहराने लगी थी तो नत्थू कोठरी के अन्दर घुसा था। दीये की मद्धम, नाचती-सी रोशनी में उसने देखा कि कचरा सारी कोठरी में बिखर गया है और उसमें से कीच की सी सड़ाँध उठ रही है। तभी इस बोझिल बदसूरत सुअर को देखकर उसका दिल बैठ गया था और मन ही मन खीझने पछताने लगा था कि उसने यह गन्दा जोखिम भरा काम क्यों सिर पर ले लिया है। तब भी उसका मन आया था कि लपककर कोठरी का दरवाज़ा खोल दे और सुअर को बाहर धकेल दे।


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